बिहार को बजट में मिली सौगातों पर जेडीयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार का अध्याय अभी खत्म नहीं हुआ है और न ही होगा। महागठबंधन के माय समीकरण को तोड़ने में इस बजट की भूमिका पर भी उन्होंने अपनी राय रखी। सीट बंटवारे और भाजपा के साथ गठबंधन पर भी उन्होंने खुलकर बात की।
बजट में बिहार को प्राथमिकता मिलने के बाद जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष एवं राज्यसभा सदस्य संजय कुमार झा सुर्खियों में हैं। नीतीश कुमार ने उन्हें बिहार की अपेक्षाओं को लेकर केंद्र सरकार से बेहतर समन्वय का काम दे रखा है।
दिल्ली के बाद बिहार विधानसभा चुनाव की बारी है, जिसमें जदयू की अहम भूमिका होगी। भाजपा से समन्वय, सीट बंटवारा एवं बिहार के राजनीतिक भविष्य जैसे मुद्दों पर विशेष संवाददाता अरविंद शर्मा ने संजय झा से लंबी बात की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश:
सवाल – बजट में बिहार को बहुत कुछ मिला। कहा जा रहा कि विधानसभा चुनाव के चलते इतना दिया गया।
कैसे और क्यों मिला, इसका कोई मतलब नहीं। मिल गया, यह मायने रखता है। मखाना बोर्ड, खाद्य प्रौद्योगिकी एवं उद्यमिता प्रबंधन संस्थान के साथ मिथिलांचल में सिंचाई के लिए कोसी नहर परियोजना को वित्तीय मदद को मंजूरी मिली है। इससे 50 हजार हेक्टेयर में अतिरिक्त सिंचाई की व्यवस्था होगी।
ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट प्रवासी बिहारियों के लिए वरदान साबित होगा। पटना से सीधे गल्फ एवं अन्य देशों की यात्रा की जा सकेगी। राजगीर में अतिरिक्त एयरपोर्ट बनेगा। पिछले बजट में भी बिहार को 12 हजार करोड़ के दो एक्सप्रेसवे मिले थे। विशेष सहयोग के लिए बिहार प्रधानमंत्री एवं वित्तमंत्री का आभारी है।
सवाल – राजद का आरोप है कि विशेष राज्य का दर्जा नहीं मांगा
विशेष राज्य या विशेष सहायता के मुद्दे को जदयू ने सबसे ऊपर रखा था। इसके लिए लगातार आंदोलन भी किया। पटना के गांधी मैदान एवं दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रदर्शन किया। वित्त आयोग ने जब विशेष राज्य के कैटेगरी को ही खत्म कर दिया तो हमें पीछे हटना पड़ा, लेकिन विशेष सहायता तो मिल ही रही है। मगर आज जो बयान जारी कर रहे हैं, वह भी केंद्र की सरकार में दस वर्ष रहे। उसी समय क्यों नहीं लिया।
सवाल – बिहार में वोटरों की जाति होती है। महागठबंधन के पास माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण का वोट है। यह बजट किस हद तक उस समीकरण को तोड़ पाएगा?
काम के सामने कोई समीकरण नहीं ठहरता। नीतीश कुमार ने कभी जाति की राजनीति नहीं की। उनकी पहचान सिर्फ काम से है। इस बार 2010 का भी रिकॉर्ड टूटेगा, क्योंकि लोग पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहते। महिलाएं, ओबीसी, युवा, एससी सब हमारे साथ हैं। किसी को नीतीश कुमार से दुश्मनी नहीं। लोकसभा का नतीजा देख लीजिए। उन्होंने तीस सीटें एनडीए की झोली में डाली है। विधानसभा उपचुनावों में हमने ऐसी सीटें भी जीती हैं जो 30 वर्षों से हमारे पास नहीं थीं। बिहार सरकार के निर्णयों एवं न्याय में जाति दिखती है क्या। छात्राओं को साइकिल-ड्रेस देने में भेदभाव दिखा क्या। नीतीश कुमार सर्वजाति-सर्वधर्म के नेता हैं।
सवाल – सीट बंटवारे में दांवपेच की खबरें आ रही हैं। क्या जदयू का प्रयास है कि भाजपा से ज्यादा सीटें लेकर फिर बड़ा भाई बन जाए?
बड़ा-छोटा में मत पड़िए। भाजपा-जदयू का तीन दशक से स्वाभाविक गठबंधन है। जिलों में जाकर देखिए। पहली बार बिहार में एनडीए के पांचों दल के नेता-कार्यकर्ता मिलकर काम कर रहे हैं। सीट बंटवारा कोई मुद्दा ही नहीं। 2005 में दोनों ने मिलकर सत्ता परिवर्तन किया था। नीतीश कुमार भी कई इसे सार्वजनिक रूप से बोल चुके हैं। बिहार सुरक्षित हाथ में है। समृद्धि के रास्ते पर है।
सवाल – बिहार राजनीतिक परिवर्तन के दौर से गुजरने वाला है क्या?
बेतुका सवाल है। पिछले 12 वर्षों से देख रहा हूं। जब-जब मीडिया ने कहा कि नीतीश कुमार का युग खत्म हो गया, तब-तब बाउंस बैक हुआ। 2004 से ही देखिए। केंद्र में जब अटल सरकार का अंत हुआ तो लोगों को लगा कि नीतीश कुमार का अध्याय खत्म हो गया। 2014 में जब उन्होंने एनडीए से अलग होकर लोकसभा चुनाव लड़ा तो ऐसी ही बात उड़ाई गई। चाहे राजद के साथ 2015 के विधानसभा चुनाव हो या भाजपा के साथ 2020 का–हर बार ऐसी ही अटकलें लगाई जाती रहीं, मगर हुआ क्या? नीतीश कुमार का अध्याय आज भी चल रहा है। जनता में भरोसे का नतीजा है कि दो दशक तक सत्ता में बने रहने के बावजूद अपराजेय हैं।