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बागमती एक्सप्रेस एक्सीडेंट हादसे के वक्त क्या थी स्थिति? ट्रेन में सवार दरभंगा के एक यात्री ने बताई हर बात |

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तमिलनाडु के तिरुवल्लूर में बागमती सुपरफास्ट एक्सप्रेस के 12 डिब्बे के साथ मालगाड़ी से टकराकर पटरी से उतर गए। हादसे में डिब्बे में मौजूद 19 लोग घायल हुए लेकिन किसी की जान नहीं गई। घायलों को चेन्नई के अस्पताल में भर्ती कराया गया। यात्रियों को बाद में दूसरी ट्रेन से उनके गंतव्यों पर पहुंचाया गया। इस हादसे की जांच के लिए सरकार के तरफ से एक टीम बनाई गई है।

इस बीच, बागमती स्पेशल ट्रेन से चेन्नई से दरभंगा पहुंचे सीतारमन झा नाम के एक यात्रा ने हादसे के बारे में खुलकर बताया।

उन्होंने एएनआई से बात करते हुए कहा कि दुर्घटना भयावह थी, किसी तरह से जान बच पाई है। सीतारमन ने कहा कि दुर्घटना के बाद जब किसी तरह से ट्रेन से बाहर निकले तो मंजर इतनी खास नहीं थी। किसी के जानमाल का नुकसान नहीं हुआ।

हादसे के वक्त बोगी में मच गई थी अफरा-तफरी
सीतारमन ने आगे कहा कि हादसे के वक्त बोगी के अंदर अफरा-तफरी का माहौल था। लोग यह समझ नहीं पा रहे थे कि उनके साथ क्या हो गया है। दुर्घटना में घायल लोगों को इलाज के लिए चेन्नई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

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खरना के रोटी और खीर का प्रसाद ग्रहण कर श्रद्धालुओं ने किया , डूबते सूर्य को आज देंगे अर्घ्य

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पूरे दिन निर्जला उपवस के बाद श्रद्धालुओं ने सायंकाल सूर्य देव की पूजा अर्चना की और रोटी, गुड़ और खीर का प्रसाद ग्रहण किया। इस अवसर पर प्रसाद को न केवल अपने परिवार बल्कि आस-पास के लोगों के बीच भी वितरित किया गया, जिससे परस्पर सौहार्द और एकता का संदेश दिया गया। श्रद्धालुओं ने पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ सूर्य देव की उपासना में खुद को समर्पित किया।

चार दिवसीय छठ महापर्व के दूसरे दिन बुधवार को श्रद्धालुओं ने पारंपरिक रूप से खरना किया। इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने पूरे दिन निर्जला व्रत रखा और सायंकाल सूर्य देवता की पूजा-अर्चना के बाद रोटी, गुड़ और खीर का प्रसाद ग्रहण किया। प्रसाद को न केवल परिवार के सदस्यों, बल्कि आस-पास के लोगों में भी बांटा गया, जिससे एकजुटता और सामूहिक सौहार्द का संदेश दिया गया। श्रद्धालुओं ने इस अवसर पर सूर्य देवता के प्रति अपनी निष्ठा और भक्ति प्रकट करते हुए स्वयं को समर्पित किया।

छठ महापर्व की शुरुआत मंगलवार को नहाय-खाय के साथ हुई, जब व्रतियों ने पवित्र नदियों और तालाबों में स्नान कर शुद्धता का प्रतीकात्मक संकल्प लिया और शाकाहारी भोजन ग्रहण किया। नहाय-खाय के बाद बुधवार को खरना का आयोजन हुआ, जो इस महापर्व का एक अहम हिस्सा है और इसे श्रद्धालुओं द्वारा पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाया जाता है।

अर्घ्य की तैयारी और श्रद्धालुओं का उत्साह
बृहस्पतिवार को श्रद्धालु अस्ताचल सूर्य को पहला अर्घ्य देंगे, जिसके लिए दिल्ली के विभिन्न बाजारों में चहल-पहल बढ़ गई है। श्रद्धालु अर्घ्य देने के लिए आवश्यक पूजन सामग्री जैसे फल, गन्ना, नारियल, मिट्टी के दीपक और अन्य सामग्री खरीद रहे हैं। साथ ही, ठेकुआ बनाने की तैयारी भी जोरों पर है, जिसे सूर्य देव को अर्पित किया जाएगा।

घाटों पर भव्य तैयारियां
सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के लिए दिल्ली के यमुना नदी और अन्य प्रमुख घाटों पर लाखों श्रद्धालुओं के एकत्र होने की संभावना है। बृहस्पतिवार की शाम और शुक्रवार की सुबह श्रद्धालु जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देंगे। इसके अलावा, इंडिया गेट के बोट क्लब, पश्चिमी यमुना नहर और विभिन्न तालाबों पर भी अर्घ्य अर्पित करने की व्यवस्था की गई है। सभी घाटों पर पंडाल लगाए गए हैं और दिवाली की तरह सजावट की गई है, जिससे यह पर्व और भी भव्य बन गया है।

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अब हमारे बीच नहीं रहीं देश की मशहूर लोकगायिका शारदा सिन्हा

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बिहार की कोकिला शारदा सिन्हा की गायिकी में न सिर्फ बिहार की, बल्कि समूचे भारत की लोक संस्कृति की गहरी छाप बसी हुई है। उनके द्वारा गाए गए गीतों में छठ, विवाह, और होली जैसे पर्वों की आत्मा समाई है। इन गीतों ने न केवल बिहार के घर-घर में अपनी विशेष पहचान बनाई, बल्कि पूरे देशभर में लोक संगीत की धारा को संजीवनी दी है। शारदा सिन्हा के सैकड़ों गीत आज भी हर दिल में बसे हुए हैं, और हर त्योहार की खुशी में रंग भरते हैं।

देश की मशहूर लोकगायिका शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं रहीं, लेकिन उनकी आवाज हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेगी। दिवाली से लेकर छठ महापर्व तक उनके गाए हुए गीत हर घर, हर गली और हर छठ घाट पर गूंजते रहते हैं, और उनकी संगीत की छाप भारतीय लोक संस्कृति पर अमिट रहेगी। मंगलवार रात दिल्ली के एम्स अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली, और उनके निधन से यूपी-बिहार ही नहीं, बल्कि पूरा देश गहरे शोक में डूब गया। महज 72 साल की उम्र में उनका यह अचानक निधन एक अपूरणीय क्षति है। उनके बेटे अंशुमान सिन्हा के अनुसार, शारदा जी मल्टीपल मायलोमा जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं, जो कैंसर का एक प्रकार है। 2017 से ही वह इस बीमारी से संघर्ष कर रही थीं, लेकिन उन्होंने कभी अपनी बीमारी को सार्वजनिक नहीं किया और हमेशा हंसते हुए, जनता के बीच अपनी आवाज से सुख और उल्लास फैलाती रहीं।

अंशुमान सिन्हा के अनुसार, शारदा सिन्हा 2017 से मल्टीपल मायलोमा जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं, और हम परिवार के लोग इसे अच्छी तरह जानते थे। उनकी हमेशा यह इच्छा रही कि उनकी व्यक्तिगत पीड़ा को कभी सार्वजनिक न किया जाए। वह अपनी तकलीफों का ब्योरा देने से अधिक पसंद करती थीं, बजाय इसके कि कोई उनकी बीमारी पर चर्चा करे। उनका दृढ़ निश्चय और हिम्मत हमेशा प्रेरणादायक रही, और यही वजह है कि वह अपनी संघर्षों को बिना किसी शिकायत के अपने संगीत और हंसी में छिपाए रखती थीं।

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“नहाय-खाय से शुरू हुआ छठ महापर्व, आस्था, श्रद्धा और समर्पण का एक अद्वितीय संगम है।”

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“आज, 5 नवंबर 2024, मंगलवार से छठ महापर्व की शुभ शुरुआत हो चुकी है। छठ के पहले दिन ‘नहाय-खाय’ की परंपरा से इस महापर्व का उल्लास आरंभ होता है। आइए, जानें कि इस दिन नहाय-खाय में कौन-कौन से महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना चाहिए।”

हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय के साथ छठ पूजा की शुरुआत होती है। इस साल, 5 नवंबर 2024, मंगलवार से छठ महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। छठ के पहले दिन ‘नहाय-खाय’ की परंपरा से व्रत की धारा शुरू होती है, जिसमें व्रती सुबह स्नान करके सात्विक भोजन करते हैं। नहाय-खाय से आरंभ होकर यह पर्व उषा अर्घ्य के साथ संपन्न होता है। इन चार दिनों में व्रत के कई नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। तो आइए, जानते हैं छठ पूजा के पहले दिन नहाय-खाय में किन विशेष नियमों का पालन करना चाहिए।

छठ पूजा में नहाय-खाय का महत्व
नहाय-खाय के दिन व्रती तालाब, नदी या घर में स्नान कर शुद्ध होते हैं। छठ पूजा में इस दिन का विशेष महत्व है, क्योंकि इसके साथ ही इस पावन पर्व की शुरुआत होती है। नहाय-खाय के दिन व्रती सात्विक आहार ग्रहण करके खुद को पवित्र करते हैं, जिससे वे मानसिक और शारीरिक रूप से छठ पूजा के लिए तैयार हो जाते हैं। यह दिन व्रतियों के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और उन्हें आत्मिक शांति प्रदान करता है।

नहाय-खाय के नियम

  1. नहाय-खाय के दिन पहले घर को साफ-सुथरा किया जाता है।
  2. व्रती को प्रात:काल उठकर स्नान करके शुद्ध होना चाहिए।
  3. नहाय-खाय के दिन नया या साफ वस्त्र पहनें।
  4. सूर्य देव को जल अर्पित करें और फिर उन्हें भोग लगाकर भोजन ग्रहण करें।
  5. इस दिन केवल सात्विक भोजन बनाएं, और प्याज-लहसुन से बचें।
  6. कद्दू की सब्जी, लौकी चने की दाल और भात खाने की परंपरा है।
  7. व्रती सबसे पहले भोजन करें, फिर परिवार के अन्य सदस्य खाएं।
  8. परिवार के अन्य सदस्यों को भी सात्विक भोजन ही करना चाहिए।

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