बिहार पुलिस ने एक बड़ी घोषणा की है। अब पुलिसकर्मियों के आश्रितों को सेवाकाल के दौरान मृत्यु होने पर 25 साल तक अनुदान योजना का लाभ मिलेगा। पहले यह अवधि 20 वर्ष थी। अनुदान की राशि अब कुल राशि के आधार पर तय की जाएगी। कोर्स की राशि 10 हजार रुपये होने तक प्रति सेमेस्टर 100 प्रतिशत राशि का भुगतान होगा।
सेवाकाल के दौरान मृत्यु होने पर अब पुलिसकर्मियों के आश्रितों को 25 साल तक अनुदान योजना का लाभ मिलेगा।
पहले आश्रितों को 20 वर्षों तक के लिए अनुदान राशि दी जाती थी। डीजीपी विनय कुमार की अध्यक्षता में गठित बिहार पुलिस की केंद्रीय प्रशासी समिति ने इस निर्णय पर मुहर लगा दी है।
समिति ने निर्णय लिया है कि अनुदान की राशि अब कुल राशि के आधार पर तय की जायेगी। कोर्स की राशि 10 हजार रुपये होने तक प्रति सेमेस्टर 100 प्रतिशत राशि का भुगतान होगा।
नये पाठ्यक्रम लेने पर भी अनुदान का मिलेगा लाभ
मगर कोर्स फी 10 हजार से एक लाख रुपये होने पर कुल राशि का 50 प्रतिशत, कोर्स फी एक लाख से दो लाख रुपये होने पर कुल राशि का 40 प्रतिशत, दो लाख रुपये से तीन लाख रुपये होने पर कुल राशि का 30 प्रतिशत और तीन लाख रुपये से अधिक होने पर प्रति कोर्स फी का प्रति सेमेस्टर 20 प्रतिशत अनुदान राशि का भुगतान किया जायेगा।
पहले विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए निर्धारित शुल्क के आधार पर अनुदान राशि दी जाती थी। नई व्यवस्था में पुलिसकर्मियों के आश्रितों को नये पाठ्यक्रम लेने पर भी अनुदान का लाभ मिलेगा।
लापरवाही पर होंगे निलंबित : डीजीपी
डीजीपी विनय कुमार ने राज्य के सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी-एसटी एक्ट) के मामलों की जांच में कोई कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
जिलों के अनुसूचित जाति-जनजाति थानों के साथ ही सामान्य थानों में इस अधिनियम के तहत दर्ज मामलों का अनुसंधान 60 दिनों में पूर्ण किया जाए।
मामलों को लटकाए रखने वाले जांच अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाएगा। वह मंगलवार को पुलिस मुख्यालय सरदार पटेल भवन स्थित सभागार में इस विषय पर आयोजित एक दिवसीय प्रशिक्षण-सह-संवेदीकरण कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
इस कार्यशाला का आयोजन सीआइडी (कमजोर वर्ग) और बिहार सरकार के अनुसूचित जाति-जनजाति कल्याण विभाग ने संयुक्त रूप से किया था।
बिहार में हर साल अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत औसतन छह से सात हजार केस दर्ज किए जाते हैं, लेकिन इन मामलों के अभियुक्तों को सजा दिलाने की रफ्तार कम है।
वर्ष 2023-24 में दर्ज मामलों में सजा दिलाने का औसत 10 प्रतिशत से भी कम रहा है। डीजीपी ने निर्देश दिया कि एससी-एसटी अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में दोषियों को सजा दिलाने की गति में तेजी लाएं।
दर्ज कराए जाते हैं कई फर्जी मामले
- उन्होंने कहा कि बिहार देश का पहला राज्य है, जहां सभी 40 पुलिस जिलों में अनुसूचित जाति-जनजाति थाने कार्यरत हैं, जबकि देश के विभिन्न राज्यों के महज 140 जिलों में ही अनुसूचित जाति-जनजाति थाने कार्यरत हैं।
- बिहार के सभी जिलों में अनुसूचित जाति-जनजाति थानों के कार्यरत रहने के कारण यहां अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण कानून के तहत दर्ज होने वाले मुकदमों की संख्या भी देश के अन्य राज्यों से अधिक है।
- इसमें कई फर्जी मामले भी दर्ज कराए जाते हैं। उन्होंने मुकदमों की जांच से जुड़े अधिकारियों को ऐसे फर्जी मामलों की जांच कर उनका तत्काल निपटारा करने का भी निर्देश दिया।
- मौके पर सीआइडी के एडीजी पारसनाथ, कमजोर वर्ग के एडीजी अमित कुमार जैन, एससी-एसटी कल्याण विभाग के सचिव देवेश सेहरा समेत कई पदाधिकारी मौजूद रहे।