सम्राट अशोक के कुम्हरार से डेढ़ किमी दूर सैकड़ों साल प्राचीन शिव मंदिर मिट्टी में दबा हुआ मिला है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर 500 साल पुराना है। मंदिर मिलने की खबर सामने आते ही वहां पर आस-पास के लोगों की भीड़ एकत्र हो गई है। भक्त लाइन में लगकर भोले बाबा के दर्शन कर रहे हैं। वहीं महिलाएं स्नान कराने के लिए दूध लेकर पहुंच रही हैं।
प्राचीन पाटलिपुत्र के क्षेत्र पटना सिटी में कई ऐतिहासिक धरोहर हैं। कुछ तो इतने प्राचीन हैं कि मिट्टी में जमींदोज हो चुके हैं। ऐसा ही एक सैकड़ों वर्ष पुराना मंदिर पटना सिटी के आलमगंज थाना क्षेत्र के मठ लक्ष्मणपुर स्थित डॉ. नारायण बाबू की गली मोहल्ला में मिट्टी में दबा मिला है।
मिट्टी के टीले के नीचे मिला मंदिर
अशोक सम्राट के कालखंड से जुड़े कुम्हरार से लगभग एक किलोमीटर दूर यहां एक मठ की जमीन पर लगा मिट्टी का टीला अचानक ढह गया। उसके नीचे प्राचीन शिव मंदिर के अवशेष मिले। मंदिर मिलने की खबर फैलते ही यहां दर्शन के लिए लोगों की भीड़ उमड़नी शुरू हो गई। गुमनाम मोहल्ला अचानक सुर्खियों में आ गया।
मठ के हिस्से में प्राचीन मंदिर
स्थानीय निवासी उमाशंकर प्रसाद ने बताया कि मठ काफी प्राचीन है। इस पर कब्जा होता चला गया। मठ के एक हिस्से में मिट्टी का ढेर था। इस हिस्से की जमीन अचानक धंस गई थी।स्थानीय लोगों ने जब मिट्टी को थोड़ा और हटाया तो अंदर प्राचीन रूप से बना हुआ मंदिर दिखा। उसमें तहखाना बना था। उसी तहखाना में शिवलिंग विराजमान थे।
शिवलिंग के चारों ओर नक्काशी
शिवलिंग के चारों ओर प्राचीन काल के नक्काशी वाले चार पाए बने हैं। ऊपर गुंबद बना हुआ है। खास बात यह है कि सैकड़ों वर्ष पुराना ढांचे से जब मिट्टी हटाई गई तो यह बिल्कुल साफ और चमकदार दिख रहा था।
मंदिर के प्रकट होने के बाद शिवलिंग को भक्तों ने सजायास्थानीय बुजुर्ग शिव बालक महतो ने बताया की मठ में मंदिर की बात पहले से वे लोग सुनते आ रहे थे, लेकिन मिट्टी रहने के कारण यह दिखता नहीं था। मठ के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया गया है।जो खाली हिस्सा था उसे मिट्टी से भर दिया गया था। मंदिर के प्रकट होने की सूचना पर दूर-दूर से सैकड़ों लोग वहां पहुंचने लगे। महिलाएं जल और दूध लेकर पहुंच पूजा कर रही हैं।
दर्शन के लिए उमड़ी भक्तों की भीड़
तंग गली में स्थित मठ की जमीन पर मंदिर को देखने के लिए इतने श्रद्धालु पहुंचने लगे हैं कि दर्शन के लिए लाइन में लगना पड़ रहा है। स्थानीय लोगों ने यहां बिजली एवं अन्य मूलभूत सुविधाओं का इंतजाम किया है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर लगभग 500 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है।पुरातत्व विभाग की जांच से ही मंदिर के काल खंड का पता चल सकेगा। स्थानीय श्रवण कुमार ने बताया की बड़ी संख्या में लोगों ने वहां पहुंच कर पूजा पाठ शुरू कर दिया है।कुछ युवाओं ने मंदिर की साफ सफाई की। काले पत्थरों से बने मंदिर के अंदर का ढांचा बहुत मनोरम दिख रहा है।
क्या है जमीन से जुड़ा मामला?
- स्थानीय उमाशंकर प्रसाद ने कहा कि मठ काफी प्राचीन है। इसकी कड़ी बोधगया से जुड़ी है। इसके बड़े हिस्से पर अतिक्रमण होने से आस्था पर गहरी चोट पहुंच रही है।
- धार्मिक न्यास बोर्ड ने इस पर संज्ञान लिया था। 60-70 वर्ष पूर्व तक इस मठ के महंत लक्ष्मण गिरि हुआ करते थे। उन्हीं के नाम पर लोग इस मोहल्ले को मठ लक्ष्मणपुर के नाम से भी जानते हैं।
- उनके निधन के बाद इस जमीन की देखरेख एक व्यक्ति कर रहे थे। बाद में उन्होंने मठ के अस्तित्व को खत्म कर इस पर धीरे-धीरे मकान बनवाना शुरू कर दिया।
क्या है कुम्हरार का इतिहास
जहां मंदिर मिला है वहां से डेढ़ किलोमीटर दूर प्राचीन कुम्हरार है। प्राचीन शहर पाटलिपुत्र के अवशेषों की खुदाई साल 1913 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने डी.बी. स्पूनर के नेतृत्व में शुरू की थी।यहां मौर्य काल (322-185 ईसा पूर्व) के पुरातात्विक अवशेष मिले हैं। ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक ने कुम्हरार में 80 स्तंभों वाले हाल में तीसरी बौद्ध परिषद बुलाई थी।कुम्हरार में भी खुदाई के दौरान एक मठ-सह-धनवंतरी अस्पताल भी मिला है।